राष्ट्रभाषा किसे कहते हैं ? राष्ट्रभाषा से अभिप्राय किसी देश की उस भाषा से है जो उस संपूर्ण देश से सम्बंधित कार्यवाहियोंका माध्यम हो और जिस में अंतरराष्ट्रीय व्यवहारों का साहित्य सुरक्षित रहे | राष्ट्रभाषा का अभिप्राय देश की प्रांतीय भाषाओं का बहिष्कार करके उनके स्थान पर किसी एक भाषा की स्थापना नहीं है | राष्ट्रभाषा प्रांतीय भाषाओं का स्थान कभी नहीं ग्रहण कर सकती | दोनों के क्षेत्र पृथक-पृथक हैं राष्ट्रभाषा का सम्बन्ध संपूर्ण देश से है | प्रांतीय भाषा का सम्बन्ध एक प्रान्त से है |
भारत वर्षा सरीखे बृहत देश में राष्ट्रभाषा की स्थिति अत्यंत शोचनीय है | कहने की आवश्यकता नहीं कि देश के निवासी इस के महत्व का अनुभव करते हुए भी इसकी पूर्ति करने में संलग्न नहीं होते हैं| कोई एक सामान्य भाषा न होने के कारण एक प्रांत का निवासी दूसरे प्रांत के निवासी के साथ विचार विनिमय नहीं कर सकता | दो प्रांतों के रहने वाले ठीक उसी प्रकार एक दूसरे से भिन्न रहते हैं, जैसे दो देशों के निवासी | इसके बिना एक राष्ट्र का निर्माण करना कठिन ही नहीं वरन असंभव है | अस्तु अब हमको एक राष्ट्रभाषा स्थापित करके देश के भिन्न भिन्न प्रांतों को राष्ट्रीयता के बंधन में बांधना चाहिए ताकि भारतवर्ष भी अन्य देशों के समान उन्नति कर सके | हमें भली भाँती ज्ञ\त है कि विचार ऐक्य, उद्देश्य ऐक्य और कर्त्तव्य ऐक्य, हमारे देश को नया जीवन प्रदान करने के लिए नितांत आवश्यक है और यह संभव है जब देश की एक राष्ट्रभाषा हो |
किसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए उसमें कुछ विशेषताएं अपेक्षित हैं जैसे उसके बोलने वालों की संख्या अधिक हो | वह सरल हो | जिससे सीखने वालों को कठिनाई न पड़े | उसे प्राचीनता का गौरव प्राप्त हो | वह देश की सभटा और संस्कृति से संबधित हो | उसकी लिपि सरल और वैज्ञ|निक हो |
हिंदी के अतिरिक्त किसी भी भाषा में ये सभी विशेषताएं नहीं पाई जाती हैं | हिंदी के बोलनेवालों की संख्या बहुत अधिक है | उसका विस्तार बहुत है | यह किसी एक प्रांत अथवा स्थान तक ही सीमित नहीं है | समस्त भारतवर्ष में एक कोने से दूसरे कोनेतक हिंदी बोलने व समझने वाले मौजूद हैं |
कुछ एक हज़ार पाँच सौ वर्षा पहले हिंदुस्तान के उत्तरी भाग में संस्कृत भाषा प्रचलित थी | उस समय के राजाओं ने संस्कृत भाषा को मान्यता दी थी | गुरुकुल में संकश्रुत भाषा सिखाई जाती थी | राजा के दरबार में किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता उसके संकृत ज्ञ|न पर निर्भर रहती थी | ये सब विशेषताएं संस्कृत भाषा में रहते हुए भी उस संस्थान की भाषा लोगों को आवश्यक थी | संस्कृत भाषा सीखना लोगों के लिए आसान न थी | इसलिए लोगों ने उस भाषा पर ध्यान नहीं दिया |
सरलता का गुण भी हिन्दी में अधिक है | इसके कारण ही हिन्दी प्रचलित हो गई | किसी भी व्यक्ति के लिए जो हिन्दी जानता इस भाषा का ज्ञ|न प्राप्त करना कठिन नहीं | थोड़े समय में ही वह हिन्दी में अपने विचार प्रकट कर सकता है | यह देखा गया है कि विदेशी भी थोड़े समय में टूटी फूटी हिन्दी सीख लेते हैं| जब विदेशी सीख सकते हैं तो भारतवर्ष के अन्य प्रान्तों के निवासियों के लिए यह कार्य और भी सरल है क्योंकि उनकी मातृभाषाओं और हिंदी में बहुत कुछ समानता है |
प्राचीनता का गौरव भी हिन्दी को प्राप्त है | इसका जन्म विक्रम की 11वीं शताब्दी में हो गया था | जिस प्रकार किसी जाती की उन्नति के लिए उसका प्राचीन इतिहास आवश्यक है, उसी प्रकार भाषा का प्राचीन साहित्य उसको शक्ति प्रदान करता है| जब कोई भाषा पर्याप्त समय तक साहित्य रक्षा द्वारा मेंज जाती है तभी वह राष्ट्रभाषा के योग्य होती है | हिन्दी में अच्छा साहित्य है और यह प्राचीन काल से अब तक खूब मेंज चुकी है |
हिन्दी पूर्णतया भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता और संकृति से सम्बंधित है | इसका साहित्य देश की प्राचीन सभ्यता का स्वरुप हमारे सामने उपस्तित करता है | संकृत के प्रायः सभी प्रमुख ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद हो चूका है | अनेक मौलिक ग्रन्थ भी हिन्दी में रचे गए हैं, जो भारतीय संस्कृति और हमारे प्राचीन समाज, धर्म एवं राजनीति का स्वरुप हमारे नेत्रों के समुख उपस्तित करते हैं|
हिन्दी की देवनागरी लिपि एक वैज्ञ|नानिक लिपि है | यह अनेक गुणों से परिपूर्ण है, इसे सभी मानते हैं कि यह सरल, सुबोध और दोष रहित है | इस में एक भी अनावश्यक वर्ण नहीं है | ध्वनि की दृष्टी से भी यह ठीक है | इसमें किसी विशेष प्रकार की ध्वनि के लिए सदैव ही एक वर्ण प्रयुक्त होता है |
वास्तव में हिन्दी ही एक भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा का गौरव प्रदान किया जा सकता है| हमें पूर्ण आशा है कि सभी प्रान्तों में रहने वाले लोगों के सहयोग से निकट भविष्य में हिन्दी राष्ट्रभाषा होगी |
भारत में ज्यादातर राज्यों के लोग हिन्दी जानते हैं, उसी में व्यवहार करते हैं| उसी से फूले - फले हैं| अन्तर्राजीय विचारों के आदान - प्रदान के लिए यह उपयुक्त है | हिन्दी दूसरी भाषावों को दबाती नहीं बल्कि प्रोत्साहन देती है |
किसी कवी ने सच ही कहा है :
' एक राष्ट्र हो भारत जननी
एक राष्ट्रभाषा हिनि हमारी '
end- thoughts documented sometime ಇನ್ 1999
earlier published in office magazine
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